पेड़ का दुख
वो हिल हिल कर मेरा अभिवादन कर रहे थे
ऐसे हिल रहे थे जैसे अपने बाल संवार रहे हो
हवा में ऐसे लहरा रहे थे मानो मुझे बुला रहे हो
हाथ हिला हिला कर अपनी ख़ुशी प्रकट करी
गया उनके पास और उनके दर्द की बात करी
पांवों तले जमीं खिसक गई जब दर्द उनका सुना
एक बार जब मै जंगल से गुजरा
उनमें से सबसे छोटे ने मुझसे कहा
मै बात मेरी नहीं हम सब की कर रहा हूं
इस धरा से लुप्त होती वनस्पति की कर रहा हूं
सागर की कर रहा तुम्हारे घर में रखे गागर की
मै बात इस जगत के पर्यावरण कि कर रहा हूं
तुम्हारे लिये क्या कुछ नहीं करते हम
तुम्हे सीतल समीर और छाया देते
बदले में तुम हम पर एक बाल्टी पानी भी नहीं डालते
मीठे फल देते है फ़िर भी हमें कटवा देते हो
हम अपनी पत्तिया झाड़ देते भू जल स्तर बना रहे
और तुम पानी बचाने की सोचते तक नहीं
तुम्हारी फितरत में तो पेड़ उखाड़ना है
तुम पेड़ लगाओगे कहा से जनाब
तुम तो जनसंख्या से बढ़ाओगे दबाव
अपनी खता खुद पाओगे
जब कूलर और ए सी लगाओगे
वो भी धोखा दे जायेंगे
अभी से पेड़ लगाओगे
तभी तुम पर्यावरण और देश बचा पावोगे
शिवराज खटीक
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