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दोस्त मेरा गद्दार हुआ

दोस्त मेरा गद्दार हुआ सरेआम हुआ कतले आम हुआ मैने कहा ले जा पर ख्याल रखना क्योंकि मुझको भी इससे प्यार हुआ दोस्त प्रेमिका के हाथो छीन गया प्रेमिका दोस्त के हाथों ऐसा मजाक मेरे साथ हुआ दोस्त मेरा गद्दार हुआ मेरी प्रेमिका से उसे प्यार हुआ उदास उजड़े दिल को दिलासा दे रहा था अपनी बदनसीबी पर अश्रु बहा रह था इतने में बेटरी का उजास मेरी ओर हुआ प्रेमिका की मां का आना मेरे घर हुआ आई और चिल्लाई भगा दिया मेरी बेटी को सुनकर यह इक्कठा पूरा मोहल्ला हुआ सबने भला बुरा कहा ताना मुझको दिया एक बार फिर अपनी ग़लती का एहसास हुआ दोस्त मेरा गद्दार हुआ़ मेरी प्रेमिका से उसको प्यार हुआ  इतने में ही दोस्त की बीबी भी आ गई मैने सोचा मुसीबत टल गई  मां को दोस्त की बीबी संभाल लेगी  वो भी आकर मुझको ही सुनाने लगी करते थे तुम उसके साथ नैन मट्टका भेज दिया अपने दोस्त के लटका एक बार गलती का एहसास हुआ मेरी प्रेमिका से उसे प्यार हुआ दोस्त मेरा गद्दार हुआ इसके बाद जो हुआ बहुत खराब हुआ थोड़ी देर में पुलिस आई शायद दोस्त की बीबी बुला लाई पुलिस मुझे थाने ले गई वहां जोरदार मेरी धुलाई हुई इसके

बन बंजारा बन -बन भटकत है

बन बंजारा बन -बन भटकत है मन मेरे तु कहा अटकत है तुझे ढूढन को में मन्दिर-मन्दिर फिरत तू मेरे मन मन्दिर में बसत है हर एक गोपी को पूंछा करता दिल को अपने, अंगारों से सींचा करता यमुना तट,कदंब की डारी गोपियां भी सारी की सारी है प्रभु तुम्हे पूंछा करत है बन बंजारा बन - बन भटकत है मन मेरे तु कहा अटकत है अब उधव जो आए पूछूंगा ना कोई जोग सन्देश सुनूंगा कहा मेरे श्याम सुंदर छिपत है क्या उनके पास हमारे लिए बखत है क्या उनको सबसे प्यारा तखत है बन बंजारा बन -बन भटकत है मन मेरे तु कहा अटकत है घनघोर घटा काली रात है है प्रभु सुनो कहत शिवराज है घूमकर देख लिया बृज आज है ना वैसी शांति ना वैसा रास है ना वैसी ममता ना वैसा दुलार है ना वैसा भाईचारा ना वैसा प्यार है अब देर ना करो मेरे सांवरे जल्दी आकर सुध लो सांवरे भक्त तुम्हारे भटकत है बन बंजारा बन -बन भटकत है मन मेरे तु कहा अटकत है                                                 शिवराज खटीक

क्या खाएंगे उसकी पत्नी और बच्चे

क्या खाएंगे उसकी पत्नी और बच्चे नभ में सूरज निकला और प्रभात हुई कष्टकारी क्लिष्ट काली रात की रात हुई रात का झाड़ा थोड़ा तो  कम हुआ नहीं  दरिद्र का दुख भी थोड़ा तो कम हुआ नहीं बढ़ेगी रोटी  के जुगाड की चिंता क्या खाएंगे  उसकी पत्नी और बच्चा अबकी बार खेतो में फ़सल नहीं है हो भी कहा से कुऑ में पानी नहीं है दरिद्रता का हाल बुरा है सिर पे छत परिवार में किसी के पेट में अन्न नहीं है सिर छत थी जो साहूकार ने छीन ली खेतों में फसल थी जो कुदरत ने लेली मेरा क्या दोष मैने जीवन भर खेती की कोई दूसरा काम मैने सीखा नहीं लोगों को धोका देना आता नहीं अब कहा से करू रोटी का जुगाड क्या खाएंगे उसकी पत्नी ओर बच्चे क्या खुले आसमान के तले भीख में जो खाने को मिले उसे खाकर सो जाएंगे केसे आगे बढ़ेंगे मेरे बच्चे केसे लड़ेंगे स्वार्थ भारी दुनिया से क्या कभी गरीबी से निकाल पाएंगे मेरे बच्चे या फिर गरीबी में मार जाएंगे मेरे बच्चे क्या खाएंगे उसकी पत्नी ओर बच्चें फिर से वह क्लिष्ट कली रात आयेगी फिर से झाड़ा आयेगा ठंड का खतरा बढ़ जायेगा क्या अबकी प्रभा सुख का सूरज उगेगा यही आस जीवन जीत

इंसान और मै

इंसान और मै मन्दिर , मस्जिद नहीं देखता हूं उस में बेठा भगवान देखता हूं हिन्दू, मुस्लिम नहीं देखता हूं इंसान में इंसान देखता हूं हैरान हूं मै यह देखकर लोग पूछते है  मेरा धर्म कोनसा है कहता हूं मै तो हर धर्म में  महान हिन्दुस्तान देखता हूं इंसान में इंसान देखता हू इबादत हम रब की भी करते है यह मेरा खुदा देखता है ये दुनियां नबी ने चलाई है या राम ने बनाई है में तो हर मस्जिद में राम हर मंदिर में रहीम देखता हूं इंसान में इंसान देखता हूं ईद को ईद मुबारक कह सकूं इसलिए पहले चांद देखता हूं मिलता रहे नूर सबको खुदा का इसलिए दीपक अधिक जलाता हूं होली पर शरीर पर लगा का रंग नहीं रंगों से रंगीन हुआ ,मन देखता हूं लिख सके ईद सबको मुबारक हर त्यौहार की से सके बधाई ऐसा मैं शिवराज कलम देखता हूं इंसान में इंसान देखता हूं                                शिवराज खटीक

पेड़ का दुख कविता

पेड़ का दुख वो हिल हिल कर मेरा अभिवादन  कर रहे थे ऐसे हिल रहे थे जैसे अपने बाल संवार रहे हो हवा में ऐसे लहरा रहे थे मानो मुझे बुला रहे हो हाथ हिला हिला कर अपनी ख़ुशी प्रकट करी गया उनके पास और उनके दर्द की बात करी पांवों तले जमीं खिसक गई जब दर्द उनका सुना एक बार जब मै जंगल से गुजरा उनमें से सबसे छोटे ने मुझसे कहा मै बात मेरी नहीं हम सब की कर रहा हूं इस धरा से लुप्त होती वनस्पति की कर रहा हूं सागर की कर रहा तुम्हारे घर में रखे गागर की मै बात इस जगत के पर्यावरण कि कर रहा हूं  तुम्हारे लिये क्या कुछ नहीं करते हम तुम्हे सीतल समीर और छाया देते बदले में तुम हम पर एक बाल्टी पानी भी नहीं डालते मीठे फल देते है फ़िर भी हमें कटवा देते हो हम अपनी पत्तिया झाड़ देते भू जल स्तर बना रहे और तुम पानी बचाने की सोचते तक नहीं तुम्हारी फितरत में तो पेड़ उखाड़ना है तुम पेड़ लगाओगे कहा से जनाब तुम तो जनसंख्या से बढ़ाओगे दबाव अपनी खता खुद पाओगे जब कूलर और ए सी लगाओगे वो भी धोखा दे जायेंगे अभी से पेड़ लगाओगे तभी तुम पर्यावरण और देश बचा पावोगे                       शिवराज खटीक

मेरा देश पहले था वैसा ही रहने दो

   मेरा देश पहले था वैसा ही रहने दो महफूज़ मेर देश को सभ्य समाज से रहने दो जैसा था मेरा देश पहले वैसा रहने दो नहीं चाहिए मुझे ऐसा देश जिसमे मासूमों को हवस का शिकार बनाया जाता कभी खुले आम इंसान पशु बन जाता पहले लोग दिल से बिटिया लाडो कहते थे पहले लोगो की कथनी और करनी एक होती थी आज हर एक लड़की माल और आईटम कहते है बाहर सराफात और अंदर संभोग भावना रखते है पहले लोग प्यार करते थे आज भी लोग प्यार करते है एक रामायण सा पवित्र होता था एक हवस हो गया है गिन्न आती है मुझे ऐसे समाज से मुझे दूर ही रहने दो महफूज़ मेर देश को सभ्य समाज से रहने दो जैसा था मेरा देश पहले वैसा रहने दो मोमबत्ती से कुछ नहीं होगा मसाल जलनी चाहिए जहां से इनकी हवस पैदा हो आग वहां लगनी चाहिए एक दूसरे का साथ दो हस्तीं नामर्दो की मिटा दो महफूज़ मेर देश को सभ्य समाज से रहने दो जैसा था मेरा देश पहले वैसा रहने दो                           शिवराज खटीक